छोटे से गाँव में रहता था एक सादा सा लकड़हारा, रमा नाम था उसका।
गरीबी तो थी जीवन में उसकी साथी, पर धन से कहीं बड़ी थी अंदर की अमीरी।
बचपन से ही सीखा था उसने ईमानदारी का मूल्य, हर हाल में करना इसे अपनाया।
बीते दिन जंगल में लकड़ी काटते समय, कुछ चमकीला उसकी निगाह में आया।
धरती से उठाई वह थैली तो अंदर भरा था मोती-हीरों का खजाना!
गरीब रमा के होश उड़ गए थे पल भर को, लेकिन फिर याद आई नैतिकता की बातें।
लौटा दी उसने वही थैली मुखिया को, मिला इनाम उसकी ईमानदारी का।
कुछ ही दिन बीते कि जंगल में मिला घायल हिरण, पड़ा था वह पत्थर की चट्टान पर।
रमा की दयालु आत्मा को छू गई उसकी दशा, ले आया घर अपने और किया उसका इलाज।
जब स्वस्थ हुआ वह तो चला गया अपने रास्ते, पर भूला नहीं रमा की उपकार।
अगले दिन जंगल में एक हीरा लेकर आया वही हिरण, रमा को देख कर गायब हो गया वहीं से।
बेच दिया रमा ने वो हीरा गाँव में खोली एक विद्यालय। गरीब बच्चों को दी मुफ्त शिक्षा की सौगात।
ईमानदारी और दयालुता के साथ गुजरा रमा का जीवन। गरीब था पर बना समाज का आदरणीय विभूति।
कहानी सिखाती है कि चरित्र ही जीवन की सच्ची संपत्ति।