एकत्व की साधना का अर्थ है अपने आत्म-तत्व से जुड़ना और अहंकार से मुक्त होना। इस मार्ग पर चलने के लिए हमें अपने अंदर के अहंकार को पूरी तरह से नष्ट करना होगा। अभी तक हम किसी न किसी संबंध या लेबल से खुद को पहचानते रहे हैं, जो वास्तव में सच्चाई नहीं है।
सच्चाई यह है कि हम सभी केवल एक आत्मा हैं, जो इन शारीरिक आवरणों और बाह्य संबंधों से परे है। जब हम अपने आप को इन सबसे पृथक समझना सीख लेते हैं, तभी हम एकत्व की साधना कर सकते हैं और एक स्वावलंबी जीवन जी सकते हैं।
अभी तक की हमारी पहचान किसी न किसी लेबल से जुड़ी रही है। हम खुद को लिंग, धर्म, राष्ट्रीयता, व्यवसाय या रिश्तों से जोड़कर देखते रहे हैं। लेकिन ये सभी बाह्य पहचान हैं, जो हमारे सच्चे स्वरूप को नहीं दर्शाती। हमारा असली स्वरूप तो आत्मा है, जो शरीर और मन से परे है।
जब हम इन सभी बाहरी पहचानों से मुक्त होते हैं, तभी हम अपने आत्म-तत्व को समझ सकते हैं। यही एकत्व की साधना का पहला चरण है - अहंकार को त्यागना और अपने आप को केवल एक आत्मा के रूप में समझना।
एकबार जब हम यह समझ लेते हैं कि हमारा असली स्वरूप शरीर और मन से परे है, तो हम एक स्वावलंबी जीवन जीना शुरू कर सकते हैं। हम फिर किसी बाहरी चीज पर निर्भर नहीं रहते। हमारी खुशी और शांति हमारे भीतर ही निहित होती है।
इस स्वावलंबी जीवन में हम अपने आत्म-तत्व से जुड़े रहते हैं और दुनिया की हर चीज को एक समान दृष्टि से देखते हैं। न तो कुछ हमारा होता है और न ही कुछ पराया। सभी वस्तुएं और प्राणी एक ही चेतना के अंश हैं। इस भावना से हमारे भीतर करुणा और प्रेम का भाव पनपता है।
इस प्रकार, एकत्व की साधना का अर्थ है अपने अहंकार को त्यागना, बाहरी पहचानों से मुक्त होना और अपने आत्म-तत्व से जुड़ना। इससे एक स्वावलंबी और संतुलित जीवन जीने की शक्ति मिलती है। हम दुनिया को एक समान दृष्टि से देखना सीखते हैं और हर प्राणी में एक ही आत्मा का दर्शन करते हैं। यही एकत्व का सार है।
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