एकत्व भावना का चिंतन करने पर हमें एक गहरी सच्चाई का अनुभव होता है। यह सच्चाई यह है कि हम सभी अंततः अकेले ही हैं। हमारे सुख-दुख को भोगने के लिए हम निरंतर अकेले रहते हैं, और इसी प्रकार संसार के सभी अन्य प्राणी भी अपने अकेलेपन में हैं।
यह ज्ञान प्राप्त करना कि हम सभी एकाकी हैं, एकत्व भावना की साधना का पहला चरण है। इससे हमें यह समझ आती है कि हालांकि हमें दूसरों का सहयोग करना चाहिए, लेकिन किसी से भी सहयोग की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। हमें अपने भीतर की शक्ति पर निर्भर रहना सीखना चाहिए।
एकत्व की साधना का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है अहंकार का त्याग। अभी तक हम अपने साथ किसी न किसी संबंध या लेबल को जोड़कर अपनी पहचान बनाते रहे हैं। लिंग, धर्म, राष्ट्रीयता, व्यवसाय या रिश्ते - ये सभी बाहरी पहचान हैं जो हमारे असली स्वरूप को नहीं दर्शाती।
हमारा असली स्वरूप तो आत्मा है, जो शरीर और मन से परे है। जब हम इन सभी बाहरी पहचानों से मुक्त होते हैं, तभी हम अपने आत्म-तत्व को समझ सकते हैं और एकत्व की अनुभूति कर सकते हैं।
एकत्व भावना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने अंदर के अहंकार को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए। हमें अपने आप को केवल एक आत्मा के रूप में समझना है, जो इन शारीरिक आवरणों से परे है।
एक बार जब हम यह समझ लेते हैं कि हमारा सच्चा स्वरूप मात्र आत्मा है, तो हम एक स्वावलंबी और स्वतंत्र जीवन जीना शुरू कर सकते हैं। हम किसी बाहरी चीज पर निर्भर नहीं रहते और अपने भीतर ही शांति और खुशी खोजते हैं।
इस स्वावलंबन का जीवन ही एकत्व की साधना है। इसमें हम अपने आत्म-तत्व से जुड़े रहते हैं और दुनिया की हर चीज को एक समान दृष्टि से देखते हैं। हमें समझ आता है कि न कुछ हमारा है और न ही कुछ पराया। सभी प्राणी एक ही चेतना के अंश हैं।
इस प्रकार, एकत्व की साधना में तीन मुख्य बातें शामिल हैं - अकेलेपन का अनुभव, अहंकार का त्याग और स्वावलंबन पूर्ण जीवन। जब हम इन तीनों को आत्मसात कर लेते हैं, तभी हम वास्तव में एकत्व की अनुभूति कर सकते हैं और संसार को एक नई दृष्टि से देख सकते हैं।
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